गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

320. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-2

राष्ट्रीय आन्दोलन

320. नमक सत्याग्रह, दांडी मार्च-2



1930

नमक क़ानून तोड़ने के लिए दांडी यात्रा

गांधीजी ने ऐलान कर दिया 12 मार्च को प्रातः काल नमक सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हो जाएगा। सरदार वल्लभ भाई पटेल सत्याग्रहियों और गांधी जी को सहयोग करने के लिए गांव वालों को तैयार करने बोरसद गए हुए थे। वहां उन्होंने जोशीला भाषण दिया जिसके कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। नमक सत्याग्रह की यह पहली आहुति थी। इसे गांधीजी ने लड़ाई का शुभ-शकुन माना। दूसरे दिन 75,000 लोगों की भीड़ ने साबरमती में एक जनसभा की और गांधी जी की उपस्थिति में एक प्रस्ताव पारित किया कि हम उसी पथ पर चलेंगे जिस पर सरदार वल्लभभाई चले। तबतक शांत नहीं बैठेंगे जबतक देश को आज़ाद नहीं कर लेते। ... और न ही सरकार को शांत रहने देंगे। नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आन्दोलन था। गांधीजी ने कहा, यदि भारत के लाखों गांवों के प्रत्येक गांव से दस आदमी आगे आएं और नमक क़ानून का उल्लंघन करें, तो आपके विचार से सरकार क्या कर सकती है? बहुत ही क्रूर और निरंकुश तानाशाह भी शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों के समूहों को तोप के मुंह पर नहीं रख सकता। हम बहुत ही थोड़े समय में इस सरकार को थका देंगे। हमारे उद्देश्य में न्याय का बल है, हमारे साधन पवित्र हैं। सत्य पर अटल रहे तो सत्याग्रहियों की कभी हार नहीं हो सकती।

गांधीजी ने लोगों को सत्याग्रही होने का मतलब समझाया। एक सत्याग्रही सब मनुष्यों को अपना भाई मानता है। उसे यह विश्वास होता है कि प्रेम और आत्म पीड़न से उसके प्रतिपक्षी के हृदय में भी परिवर्तन अवश्य होगा। सत्याग्रही को यह पूर्ण विश्वास होता है कि प्रेम की शक्ति इतनी महान है कि वह कड़े से कड़े पत्थर दिल को भी पिघला देती है। सत्याग्रह शांति का मार्ग है। यह मार्ग किसी के दिल में वैसी कड़वाहट उत्पन्न नहीं करता, जैसी कि हिंसा। कायरता और प्रेम साथ-साथ नहीं रहते। एक सत्याग्रही में इतना साहस और प्रेम होना होना चाहिए कि वह हिंसा का सामना कर सके और फिर भी अपने प्रतिपक्षी से प्रेम करे और उसके हृदय-परिवर्तन का प्रयत्न करे। सत्याग्रही का भय रहित होना और सत्य में अटल विश्वास उसको इतना साहस देता है कि वह किसी भी बुराई को ललकार सकता है चाहे उसके रास्ते में कितनी ही बाधाएं क्यों न हों। सत्याग्रही अपने प्रतिपक्षी की सहज बुद्धि एवं नैतिकता को शब्दों, पवित्रता, विनय, ईमानदारी और आत्म पीड़न द्वारा प्रभावित करता है। सत्याग्रही के ध्येय और साधन दोनों में ही पवित्रता होनी चाहिए। सत्याग्रहियों के लिए गांधीजी ने नियम बनाए,

1.    सत्याग्रही प्रतिपक्षी के प्रति गुस्सा नहीं करेगा,

2.    वह प्रतिपक्षी के गुस्से का सामना अहिंसा से करेगा।

3.    प्रतिपक्षी के हमले को सहेगा और पलटकर हमला नहीं करेगा,

4.    जब कोई अधिकारी उसे गिरफ़्तार करना चाहेगा, तो वह गिरफ़्तार हो जाएगा,

5.    अपने प्रतिपक्षी का अपमान नहीं करेगा,

6.    यूनियन जैक को सलाम नहीं करेगा और न ही उसका अपमान करेगा, और

7.    आन्दोलन के दौरान यदि कोई अन्य व्यक्ति किसी सरकारी अधिकारी का अपमान या उस पर हमला करता है, तो सत्याग्रही को उसे बचाना होगा।

जेल भेजे गए सत्याग्रहियों के लिए भी गांधीजी ने आचार संहिता बनाई।

1.    जेल के अधिकारियों के साथ शिष्ट व्यवहार करेगा,

2.    जेल के अनुशासन को मानेगा,

3.    अन्य साधारण क़ैदियों से स्वयं को ऊंचा नहीं समझेगा,

4.    अपने प्रति विशेष बर्ताव की मांग नहीं करेगा,

5.    जेल का भोजन खाना होगा,

6.    यदि भोजन गन्दे बर्तनों में और गाली-गलौज के साथ दिया जाए, तो खाने से मना कर देगा।

उन्होंने लोगों को यह भी समझाया कि सत्याग्रह का जो तरीका अपनाया सकता था, वह था उपवास, अहिंसा, धरना, असहयोग, सविनय अवज्ञा और क़ानूनी दण्ड। वे सत्याग्रही से खद्दर पहने की अपेक्षा रखते थे।

नमक क़ानून तोड़ने के लिए दांडी यात्रा

दक्षिण अफ़्रीका में जातीय (नस्ली) भेदभाव और भारत में विदेशी शासन के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए सभी सत्याग्रह आंदोलनों में नमक सत्याग्रह, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक दमन, शोषण व अन्याय के ख़िलाफ़ अहिंसक प्रतिरोध का सबसे दमदार व सटीक उदाहरण है। यह गांधी जी की अद्भुत कार्यशैली और प्रतिभा ही थी, जिसने साबित किया कि नमक के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा अकेले ही समूचे राष्ट्र को आंदोलित व स्पंदित कर उसे ‘पूर्ण स्वराज’ की प्राप्ति के रास्ते पर अग्रसर कर सकता है। नमक सत्याग्रह कहां से आरम्भ हो, उस जगह का चुनाव करने के लिए तीन सदस्यों की समिति बनाई गई। समिति ने कई दिनों की खोज-बीन और सोच-विचार के बाद नवसारी के निकट डांडी को चुना। समिति ने अपनी सिफ़ारिश सरदार पटेल को सौंप दी। उन्होंने गांधीजी से इसकी मंजूरी ले ली। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने स्वयंसेवकों की भर्ती करके उन्हें भीड़ को नियंत्रित करने का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया।

सत्याग्रह का समाचार पूरे संसार में फैल गया। लोग अहमदाबाद आने लगे। अभियान की शुरुआत से पहले के कुछ दिन काफ़ी तनाव भरे थे। 5 मार्च को गांधीजी ने आश्रम के निवासियों से कहा, 12 मार्च को प्रातः काल आन्दोलन शुरू हो जाएगा। मेरे साथ भाग लेने वालों को सात दिन में तैयार हो जाना चाहिए। ईश्वर पर विश्वास और प्रत्येक व्यक्ति को अपने साथ गीता एक प्रति रखनी होगी। सरदार वल्लभ भाई पटेल सत्याग्रहियों और गांधी जी को सहयोग करने के लिए गांव वालों को तैयार करने बोरसद गए हुए थे। वहां उन्होंने 7 मार्च को भाषण देते हुए कहा, शादी-ब्याह पर समारोह मनाना छोड़ दो। जो लोग ताकतवर सरकार से लड़ रहे हैं, वे अपना समय इन चीज़ों में नष्ट नहीं कर सकते। मैं जानता हूं कि तुममें से कुछ लोगों को अपनी ज़मीनें ज़ब्त हो जाने का डर है। लेकिन ज़ब्ती क्या है? क्या वे तुम्हारी ज़मीन अपने साथ इंग्लैण्ड ले आएंगे? मैं तुम्हें निडर बनाना चाहता हूं। ऐसे जोशीले भाषण देने के कारण उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। नमक सत्याग्रह की यह पहली आहुति थी। इसे गांधीजी ने लड़ाई का शुभ-शकुन माना। दूसरे दिन से प्रार्थना नदी के रेतीले तट पर होने लगी। 9 मार्च को 75,000 की भीड़ ने साबरमती में एक जनसभा की और गांधी जी उपस्थिति में एक प्रस्ताव पारित किया कि हम उसी पथ पर चलेंगे जिस पर सरदार वल्लभभाई चले। तबतक शांत नहीं बैठेंगे जबतक देश को आज़ाद नहीं कर लेते। ... और न ही सरकार को शांत रहने देंगे। 10 मार्च को प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा, यदि भारत के लाखों गांवों में प्रत्येक गांव में से दस आदमी आगे आएं और नमक क़ानून का उल्लंघन करें, तो आपके विचार से सरकार क्या कर सकती है? बहुत ही क्रूर और निरंकुश तानाशाह भी शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों के समूहों को तोप के मुंह पर नहीं रख सकता। यदि आप केवल अपने को थोड़ा सक्रिय कर लें, मैं विश्वास दिलाता हूं कि हम बहुत ही थोड़े समय में इस सरकार को थका देंगे। 11 मार्च को जो प्रार्थना सभा हुई, उसमें लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। गांधीजी ने कहा, हमारे उद्देश्य में न्याय का बल है, हमारे साधन पवित्र हैं और भगवान हमारे साथ हैं। सत्य पर अटल रहे तो सत्याग्रहियों की कभी हार नहीं हो सकती। कल जो संग्राम शुरू हो रहा है, मैं उसके लिए प्रार्थना करता हूं। रातभर लोगों की भीड़ जमा होती रही।

12 मार्च को सावरमती आश्रम में चहल-पहल चरम पर थी। आश्रमवासी तैयारियों में जुटे थे। इस आश्रम में राजनीति और आंदोलन संबंधी कोई बात गुप्त नहीं रखी जाती थी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जब ब्रिटिश अधिकारियों ने एक अंग्रेज़ पत्रकार को गांधी जी के विद्रोही विचारों का पता लगाने के लिए आश्रम भेज दिया। संवाददाता को डर था कि कहीं उसके प्रति लोग अपना गुस्सा और रोष न प्रकट करें। वह डरता-डरता आश्रम पहुंचा। उसे आश्रम से निकाल-बाहर नहीं किया गया, बल्कि आश्रम में उसका एक सम्मानित अतिथि के रूप में गांधी जी ने स्वागत किया। यही नहीं, उन्होंने एक आश्रमवासी को उसकी सुख-सुविधा व देखभाल के लिए नियुक्त कर दिया। गांधी जी की मित्रतापूर्ण मुस्कान और खुले दिल से किया स्वागत ने उस अंग्रेज़ पत्रकार का दिल जीत लिया।

12 मार्च 1930 को आश्रमवासी सुबह-सुबह उठ गए। सबने एक साथ प्रार्थना की और भजन गाया। पंडित खरे ने पहले रघुपति राघव राजाराम गाया फिर उन्होंने जानकीनाथ सहाय करे तब कौन बिगाड़ करे नर तेरो गाया। प्रार्थना के बाद गांधीजी बीमारों को देखने गए। चेचक के कारण तीन बालकों की उस समय मृत्यु हो गई थी। उसमें पंडित खरे का लड़का वसंत भी था। फिर भी दांडी कूच में सबसे आगे थे। सबों ने सफ़ेद खादी के वस्त्र पहन रखा था। प्रेमाबहन ने गांधीजी के शाल पर एक बिल्ला लटका दिया। मणिबहन पारिख ने गांधीजी का तिलक किया। सूत की गुण्डी पहनाई। करिश्माई व्यक्तित्व के धनी स्वतंत्रता आंदोलन के नेता महात्मा गांधी ने गांधी जी ने घोषणा की, मैं नमक क़ानून तोड़ने के बाद ही आश्रम में वापस लौटूंगा। सत्याग्रहियों का उत्साह और मनोबल चरम सीमा पर था। सावरमती आश्रम से पंडित खरे द्वारा गाए गए ‘वैष्णवजन’ की धुन के साथ कूच आरंभ हो गया।

गांधी जी का दांडी मार्च जिस रास्ते से गुज़रने वाला था उस पर मध्य रात्री से ही लोग जमा हो जाते थे। आश्रम के फाटक पर भी हज़ारों की भीड़ जमा हो गई थी। लोग नदी के पार से, आस पास के गांव से गए थे। दांडी साबरमती से 358 किलोमीटर दूर था। करिश्माई व्यक्तित्व के धनी स्वतंत्रता आंदोलन के नेता महात्मा गांधी ने मार्च 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद शहर से छोटे से समुद्र तटीय शहर दांडी के लिए सवेरे साढे छह बजे 24 दिवसीय नमक सत्याग्रह यात्रा शुरु की। 61 वर्ष की उम्र में भी पूरे जोश के साथ हाथ में लाठी लेकर गांधी जी ने अपने आश्रम के 78 सदस्यों के साथ सवेरे साढे छह बजे साबरमती आश्रम से चलना शुरु कर दिया। महादेव देसाई को इस दल में शामिल नहीं किया गया क्योंकि सारी यात्रा-व्यवस्था की जिम्मेदारी उनपर थी। गांधीजी ने अपने साथ जाने के लिए एक-एक कार्यकर्ता का इंटरव्यू ख़ुद लिया और चुना था। उस यात्रा के सबसे छोटे सदस्य थे 16 साल के विट्ठल लीलाधर ठक्कर और सबसे वरिष्ठ सदस्य थे ख़ुद गांधीजी जिनकी उम्र उस समय 61 साल की थी। एक ऐसा शख़्स भी था जिस पर हत्या का आरोप था। उसका नाम था खड़ग बहादुर सिंह। गांधीजी ने जब उसकी कहानी सुनी कि किन परिस्थितियों में उसने ख़ून किया था, उन्होंने उसे मार्च में शामिल कर लिया। बाद में खड़ग बहादुर सिंह को अहमदाबाद में गिरफ़्तार किया गया। उसने जेल में तब तक घुसने से इनकार कर दिया जब तक जेल का मुख्य गेट पूरी तरह से खोला नहीं जाता, ताकि वो राष्ट्रीय झंडे को सीधा, बिना झुकाए, जेल के अंदर प्रवेश कर सकें। हिन्दुओं के अतिरिक्त इस दल में दो मुसलमान, एक ईसाई दो दलित भी शामिल थे। सत्याग्रहियों में गांधीजी की तीन पीढियां शामिल थीं, गांधीजी, उनका बेटा मणिलाल जो दक्षिण अफ़्रीका के फिनिक्स में अपना काम छोड़कर इस सत्याग्रह कि पुकार सुनकर भारत चला आया था और पोता कान्तिलाल। दांडी-यात्रा की भजन-मंडली के प्रमुख पंडित खरे थे। इस यात्रा में गांधीजी मोटे खद्दर की धोती पहने हुए थे और उनके हाथ में लाठी थी। एक सस्ती घड़ी उनकी कमर से लटक रही थी। वह बहुत तेज़ चाल से चल रहे थे। …. और उनके पीछे चल रही थी एक विशाल भीड़, जिसमें लोग तो बराबर बदलते जाते थे, लेकिन उसकी विशालता में कमी नहीं आती थी। सारी यात्रा के दौरान एक घोड़ा भी साथ-साथ चल रहा था, ताकि थक जाने पर गांधी जी उस पर सवारी कर सकें, परन्तु वे उस पर नहीं बैठे। उनका कहना था कि उनके लिए दिन में 24 किलोमीटर चलना बच्चों का खेल था।   “हम परमात्मा का नाम लेकर यात्रा कर रहे हैं”, उन्होंने कहा था। जब गांधी जी किसी काम को परमात्मा का काम मानकर करते, उन्हें उस काम में प्रसन्नता होती थी। वे स्वस्थ भी थे।

गांधी जी की इस लड़ाई की फ़ौज में कुछ सैनिक नंगे पांव थे, कुछ उम्रदराज़ थे, कुछ के भूरे कैनवास के जूते पहने हुए थे या उनके पैरों में चमड़े की चप्पलें थीं, जिनके तल्ले पुराने ट्रक टायरों के टुकड़ों के थे।  उनकी धोती कमर से शुरू होकर घुटनों और एड़ी के बीच कहीं पर जाकर खतम होती थी। कुछ खुली छाती वाले थे, तो अधिकतर ने लंबी बांह के कुर्ते पहने थे या हलकी सूती चादर लपेट रखी थी। दाढ़ी मूंछ वाले लोग थे तो सफ़ाचट भी। हरेक धोती, हरेक कुर्ता, हरेक चादर हाथ से काती और बुनी खादी की थी। हरेक के सिर पर नए कपड़े की बेडौल-सी गांधी टोपी थी। यह सत्याग्रही सैनिकों का पहला दस्ता था जो देश की आज़ादी की निर्णायक लड़ाई लड़ने जा रहा था। उनकी आंखों से दृढ़ संकल्प झांक रहा था। पैरों में स्फूर्ति थी। चाल आज़ादी के पवित्र लक्ष्य से प्रेरित थी। पूरे दल में उत्साह की धारा प्रबल थी। उस दस्ते को बापू सबसे आगे हाथ में लाठी लिए तेज़ क़दमों से नेतृत्व दे रहे थे। दुबले मगर छरहरे बापू धोती पहने थे। धोती उनकी घुटनों के ऊपर ही रहती थी। उनकी धोती में कमर के पास एक घड़ी खुंसी रहती थी। उसकी चेन जांघ तक झूलती रहती थी। हाथ में डंडा लिए अनुयायियों के आगे-आगे बापू चल रहे थे। उनके कदम मज़बूत और चित्त शांत और दृष्टि निश्चल!

सत्याग्रहियों के आगे पीछे ट्रकों का काफ़िला भी था। फ़िल कंपनियों द्वारा भाड़े पर लिए गए इन ट्रकों पर कैमरे और न्यूज़रील कर्मचारी थे। वे जुलूस की तस्वीरें ले रहे थे। अंगरेज़ी हुक़ूमत को गांधी जी द्वारा दिए गए इस चुनौती से दुनिया भर में दिलचस्पी पैदा हो गई थी। फॉक्स-मूवीटोन, जे. आर्थर रैंक और पारामाउंट न्यूज़ के ट्रक इस काम में लगे हुए थे। इसके अलावा जर्मनी का ड्यूशे वोशेंशॉ और फ्रांस का सिनेपाथ भी था।

ैसे-जैसे यह दल आगे बढ़ता गया, वैसे-वैसे देश में उत्तेजना फैलती गई। जैसे ही सत्याग्रहियों का जत्था इलिस ब्रिज पर पहुंचा, सड़क के दोनों ओर एक-दूसरे का हाथ थामे मानव श्रृंखला बनाए खड़े कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर लोग दबाव डालने लगे। गांधी जी जब भी नज़दीक जाते, भीड़ आगे बढ़ जाती। लगता कि मानव श्रॄंखला टूट जाएगी पर गांधी जी के प्रति सम्मान लोगों को ऐसा करने से रोक देता। अपनी चाल को कम किए बिना गांधी जी दोनों हाथ जोड़ लोगों का अभिवादन करते हुए चल रहे थे। यह सिर्फ़ लोगों का अपने प्रति दिखाया गया प्यार स्वीकार करने के लिए होता बल्कि उन्हें आशीर्वाद देने के लिए भी था। वे सदा मुसकराते रहते।

इलिस ब्रिज पर इतनी भीड़ इकट्ठी हो गई कि सत्याग्रहियों के लिए उस पर पार करना कठिन हो गया। महादेवभाई ने सलाह-मशवरा कर वहां से सौ गज की दूरी से नदी पार करने का फैसला किया। ये गरमी से ठीक पहले के दिन थे। सबरमती नदी पतले सोते में बदल गई थी। उसमें घुटने से भी कम ऊंचाई तक पानी था। सत्याग्रहियों का जत्था जल्द ही नदी पार कर पुराने शहर से निकल कर ग्रामीण इलाकों में पहुंच गया। शहर के पांच-छह सौ लोग सत्याग्रहियों से दूरी बना कर चल रहे थे। जैसे-जैसे दिन बढ़ता गया गरमी भी बढ़ती गई। हवा में धूल के गुब्बारे उड़ने लगे। नमक यात्रा को जिस तरह दुनिया भर में प्रचार मिला, प्रेस की सुर्ख़ियों में जगह मिली और उसकी तस्वीरें खींची गईं, वह कांग्रेस की रणनीति की भारी जीत थी और इस बात का सबूत था कि सरकार इस रणनीति का महत्त्व आंकने में बुरी तरह विफल रही। सत्याग्रहियों के आगे पीछे ट्रकों का काफ़िला भी था। फ़िल कंपनियों द्वारा भाड़े पर लिए गए इन ट्रकों पर कैमरे और न्यूज़रील कर्मचारी थे। वे जुलूस की तस्वीरें ले रहे थे। अंगरेज़ी हुक़ूमत को गांधी जी द्वारा दिए गए इस चुनौती से दुनिया भर में दिलचस्पी पैदा हो गई थी। फॉक्स-मूवीटोन,जे. आर्थर रैंक और पारामाउंट न्यूज़ के ट्रक इस काम में लगे हुए थे। इसके अलावा जर्मनी का ड्यूशे वोशेंशॉ, फ्रांस का सिनेपाथ भी था। पहले से ही घोषणा हो चुकी थी कि दिन का पहला पड़ाव किस गांव में होगा।

इस यात्रा ने देश की चेतना को झकझोर दिया 12 मार्च को गांधी जी ने यह यात्रा आरंभ की और 5 अप्रील 1930 को वे दाण्डी के समुद्र तट पर पहुँचे। इस यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में बापू के समर्थक उनके साथ जुड़ गए। आश्रम से सात मील की दूरी पर चंदोला झील थी। गांधी जी झील के पास बड़े-से पीपल के पेड़ के नीचे रुक गए। मार्च में शामिल लोग कुछ परेशान दिख रहे थे। रेत के बारीक कणों से उनकी आंखें जल रही थीं। गांधी जी लोगों को स्म्बोधित कर रहे थे। सिर से पांव तक वे धूल से ढ़के थे। पसीने से लथपथ थे। लेकिन जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनकी आवाज़ ज़ोरदार थी।आपका असीम प्रेम हमें यहां तक ले आया है। मेरे प्रति आपका जो स्नेह है, उसे मैं मूल्यवान मानता हूं। पिछली रात अफ़वाह फैली कि मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया है। लेकिन ईश्वर महान है, उसके ढंग निराले हैं। अब आप लोग लौट जाइए और इस संघर्ष में अपना योगदान देने का संकल्प कीजिए। सत्याग्रही बनने के लिए तैयार रहिए। लेकिन फिलहाल तो आप अपने-अपने घर की ओर जाइए और मैं समुद्र तट की ओर बढ़ूंगा। अभी आप मेरा साथ नहीं दे सकते। लेकिन मेरा साथ अलग तरह से देने के मौक़े आपको बाद में मिलेंगे।

ांधी जी की दांडी-यात्रा के साथ-साथ देशवासियों में आमतौर पर राष्ट्रीय चेतना की एक बिजली दौड़ गई। एक दुबली-पतली किसान सी दिखती आकृति – अपनी छड़ी के सहारे क़दम रखते हुए गांधी जी जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे, पूरी राह में ग्रामीण जनता उनके दर्शन के लिए उमड़ती आ रही थी। वे नमक क़ानून तोड़ने जा रहे थे क्योंकि सरकार द्वारा कर लगाने के कारण रोज़ की ज़रूरत की एक चीज़ की क़ीमत बढ गयी थी। अहमदाबाद से 13 मील दूर असलाली में अभियान के प्रथम दिन की समाप्ति हुई।

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मनोज कुमार

 

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