राष्ट्रीय आन्दोलन
327. धरसाना
पर हमला
प्रवेश :
दिसम्बर 1929, लाहौर कांग्रेस
में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सम्पूर्ण स्वराज्य को अपना प्राथमिक लक्ष्य
घोषित किया था। यह तय किया गया कि स्वाधीनता संग्राम की अगली रणनीति और उसे शुरू
करने के समय का फैसला अब गांधीजी लेंगे। गांधीजी ने स्पष्ट शब्दों में अपना इरादा
ज़ाहिर किया, “अगर वातावरण अहिंसात्मक रहा, तो सविनय अवज्ञा आंदोलन को
शुरू करने को मैं तैयार हूं।” अहिंसा के लिए गांधीजी के हृदय में एक जबर्दस्त सच्चाई और लगन
थी। देश की स्थिति सुधारने के लिए गांधीजी अहिंसा को एकमात्र
ठीक तरीक़ा मानते थे। वे मानते थे कि इसका उचित रूप से पालन किया जाए तो यह अचूक तरीक़ा
साबित होगा। हिंसा को किसी भी रूप में आंदोलन का अंग बनने देना उन्हें पसंद नहीं था। 26 जनवरी 1930 को देश को
स्वतंत्र कराने के लिए पूरे देश में गांधीजी द्वारा लिखित यह प्रतिज्ञा ली गई, “ग़ुलामी सहन करना ईश्वर और देश के
प्रति द्रोह है। हम प्रण करते हैं कि जब तक पूर्ण स्वराज्य नहीं मिलेगा, तब तक हम इस अधम
सत्ता का अहिंसक असहयोग करेंगे और क़ानून का सविनय भंग करेंगे।” स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनाकर
उन्होंने नमक-क़ानून तोड़कर आन्दोलन शुरु करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने लोगों को
समझाया कि सरकार सारी निष्ठुरता का उपयोग करेगी। वह हमें कुचल देना चाहेगी। लेकिन
हमें अहिंसा और विनय का मार्ग नहीं छोड़ना है। गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को पत्र
लिखकर बता दिया कि वे ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ सत्याग्रह करेंगे, पर अहिंसक ढंग से।
नमक सत्याग्रह - सविनय अवज्ञा आन्दोलन
10 मार्च 1930 को साबरमती
आश्रम में गांधीजी ने ऐलान कर दिया, 12 मार्च को प्रातः काल
नमक सत्याग्रह आन्दोलन शुरू हो जाएगा। उन्होंने सत्याग्रहियों से आग्रह किया कि वे
आगे आएं और नमक क़ानून का सविनय अवज्ञा करें। इसके ख़िलाफ़ सरकार क्या कर सकती है?
बहुत ही क्रूर और निरंकुश तानाशाह भी शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों के
समूहों को तोप के मुंह पर नहीं रख सकता। यदि सत्याग्रही केवल अपने को थोड़ा सक्रिय
कर लें, तो उन्होंने विश्वास दिलाया कि वे बहुत ही थोड़े समय में इस सरकार को थका
देंगे।
नमक सत्याग्रह सविनय अवज्ञा आन्दोलन
था। दांडी कूच के पहले गांधीजी ने लोगों को सत्याग्रही होने का मतलब समझाया। एक
सत्याग्रही सब मनुष्यों को अपना भाई मानता है। उसे यह विश्वास होता है कि प्रेम और
आत्म पीड़न से उसके प्रतिपक्षी के हृदय में भी परिवर्तन अवश्य होगा। सत्याग्रही को
यह पूर्ण विश्वास होता है कि प्रेम की शक्ति इतनी महान है कि वह कड़े से कड़े पत्थर
दिल को भी पिघला देती है। सत्याग्रह शांति का मार्ग है। यह मार्ग किसी के दिल में
वैसी कड़वाहट उत्पन्न नहीं करता, जैसी कि हिंसा। कायरता और प्रेम साथ-साथ नहीं
रहते। एक सत्याग्रही में इतना साहस और प्रेम होना होना चाहिए कि वह हिंसा का सामना
कर सके और फिर भी अपने प्रतिपक्षी से प्रेम करे और उसके हृदय-परिवर्तन का प्रयत्न
करे। सत्याग्रही का भय रहित होना और सत्य में अटल विश्वास उसको इतना साहस देता है
कि चाहे उसके रास्ते में कितनी ही बाधाएं क्यों न हों, वह किसी भी बुराई के खिलाफ
हुंकार भर सकता है। सत्याग्रही अपने प्रतिपक्षी की सामान्य समझ एवं नैतिकता को
शब्दों, पवित्रता, विनय, ईमानदारी और आत्म पीड़न द्वारा प्रभावित करता है।
सत्याग्रही के ध्येय और साधन दोनों में ही पवित्रता होनी चाहिए। सत्याग्रहियों के
लिए गांधीजी ने नियम बनाए,
1. सत्याग्रही
प्रतिपक्षी के प्रति गुस्सा नहीं करेगा,
2. वह प्रतिपक्षी
के गुस्से का सामना अहिंसा से करेगा।
3. प्रतिपक्षी के
हमले को सहेगा और पलटकर हमला नहीं करेगा,
4. जब कोई अधिकारी
उसे गिरफ़्तार करना चाहेगा, तो वह गिरफ़्तार हो जाएगा,
5. अपने
प्रतिपक्षी का अपमान नहीं करेगा,
6. यूनियन जैक को
सलाम नहीं करेगा और न ही उसका अपमान करेगा, और
7. आन्दोलन के
दौरान यदि कोई अन्य व्यक्ति किसी सरकारी अधिकारी का अपमान या उस पर हमला करता है,
तो सत्याग्रही को उसे बचाना होगा।
जेल भेजे गए सत्याग्रहियों के लिए
भी गांधीजी ने आचार संहिता बनाई।
1. जेल के
अधिकारियों के साथ शिष्ट व्यवहार करेगा,
2. जेल के अनुशासन
को मानेगा,
3. अन्य साधारण
क़ैदियों से स्वयं को ऊंचा नहीं समझेगा,
4. अपने प्रति
विशेष बर्ताव की मांग नहीं करेगा,
5. जेल का भोजन
खाना होगा,
6. यदि भोजन गन्दे
बर्तनों में और गाली-गलौज के साथ दिया जाए, तो खाने से मना कर देगा।
उन्होंने लोगों को यह भी समझाया कि
सत्याग्रह का जो तरीका अपनाया जा सकता था, वह था उपवास, अहिंसा, धरना, असहयोग,
सविनय अवज्ञा और क़ानूनी दण्ड। इस प्रकार अहिंसक आंदोलन के साथ देश में अंग्रेज़ी शासन के ख़िलाफ़
सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में 12
मार्च, 1930 को नमक यात्रा
शुरु हुई थी। 241 मील की यात्रा का अंत 5 अप्रैल, 1930 को हुआ। 6 अप्रैल को गांधीजी ने समुद्र के जल से नमक बना कर नमक
कानून को तोड़ा। उपस्थित जनसमुदाय ने भी समुद्र
से नमक बनाया। गांधीजी ने घोषणा की, नमक क़ानून को अब औपचारिक रूप से भंग कर दिया
गया है। अब यह उन सभी के लिए खुला है, जो नमक बनाकर, नमक क़ानून के अभियोजन को
स्वीकार करने के लिए सहर्ष प्रस्तुत हों। सारा देश उस हुक़ूमत के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ, जिसे गांधीजी ने ‘गुंडा राज’ कहा था। लाखों लोगों ने
नमक क़ानून को तोड़ा। इसकी वजह से हजारों भारतीय कुछ महीने के अंदर गिरफ़्तार किए गए।
इससे एक चिंगारी भड़की जो सविनय अवज्ञा आंदोलन में बदल गई।
उसी दोपहर में गांधीजी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि
उन्हें आशंका थी कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। अब भी उन्हें गिरफ़्तारी की पूरी
उम्मीद है। लेकिन यह संघर्ष इतना बड़ा है कि उनकी गिरफ़्तारी से रुक नहीं सकता। सविनय
अवज्ञा आंदोलन नमक क़ानून तोड़ने के अलावा दूसरे रूपों में भी फैलेगा। उन्होंने यह भी
घोषित किय़ा कि वे सबरमती आश्रम तब तक नहीं लौटेंगे जब तक कि देश को आज़ादी नहीं मिल
जाती। दांडी में नमक-क़ानून भंग किए जाने के बाद सभी कांग्रेसी संस्थाओं
को ऐसा ही करने और अपने-अपने क्षेत्र में सविनय अवज्ञा आरंभ करने की अनुमति दे दी गई
थी। सारे देश में अद्भुत उत्साह का संचार हो चुका था। पूरे देश में शहर-शहर, गांव-गांव में नमक बनाने की चर्चा ज़ोर पकड़ चुकी
थी। नमक तैयार करने के एक-से-एक तरीक़े काम में लाए जाने लगे थे। लोग बर्तन-कड़ाहे इकट्ठा
करते, नमक तैयार करते और विजय के उन्माद में उसे लेकर घूमते, उसकी नीलामी करते। बड़ी-बड़ी
बोली लगती, लोग नमक ख़रीदते। जनता का अगाध उत्साह देखने लायक था। जहां
नमक बनाने की सुविधा नहीं थी, वहां ‘ग़ैरक़ानूनी’ नमक बेचकर कानून तोड़ा गया। हर कहीं
नमक गोदामों पर धावा बोला गया तथा अवैध नमक के निर्माण का काम हाथों में लिया गया। पुलिस की पाशविकता और दमन के बावजूद लोगों का
उत्साह तनिक भी कम नहीं हुआ। सत्याग्रही के हाथों में आकर नमक राष्ट्रीय स्वाभिमान
का प्रतीक बन गया था। सरकार ने दमन
का रास्ता अपनाया। 31 मार्च तक 35,000 से
अधिक लोग गिरफ़्तार कर लिए गए थे। पुलिस ने कई जगह गोलियां भी चलाई। पूरे देश में
अग्रेज़ी हुक़ूमत ने नृशंसता का नंगा नाच किया। गांधीजी ने लोगों से अंग्रेज़ों के
दमन का जवाब संयम से देने के लिए कहा। गांधीजी ने अपने संदेश में कहा, वर्तमान में
भारत का स्वाभिमान सत्याग्रहियों के हाथों में मुट्ठीभर नमक के रूप में प्रतीकमय हो गया है। पहले हम इसे धारण करें,
फिर तोड़ें लेकिन नमक का कोई स्वैच्छिक समर्पण न हो। लोगों ने विदेशी कपड़े और अन्य
चीज़ों का भी बहिष्कार करना शुरू कर दिया। शराब की दुकानों पर धरना दिया जाता।
लोगों की गिरफ़्तारियां होती रही।
नमक सत्याग्रह के सिलसिले में
लगभग 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।
गिरफ़्तार होने वालों में गाँधी जी भी थे। गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने 4 मई की रात को वायसराय को पत्र
लिखा, “सत्याग्रह के सिद्धान्त के
अनुसार सरकार जितना दमन और ग़ैरक़ानूनी काम करेगी उतना ही हम दुख और पीड़ा उठाएंगे।
स्वेच्छा से सही गई पीड़ा की सफलता निश्चित है। हिंसा अहिंसा से ही जीती जा सकती
है। आपसे विनती है कि नमक कर ख़त्म कर दें।” एक पत्रकार ने गांधीजी से पूछा,
“क्या आपकी गिरफ़्तारी से पूरे देश
में झगड़े-फसाद होंगे?” गांधीजी ने कहा, “नहीं, मुझे ऐसी आशंका नहीं है।” गांधीजी 5 मई को गिरफ्तार कर लिए गए।
गिरफ्तारी के ठीक पहले उन्होंने अहिंसात्मक विद्रोह की दूसरी और पहले से अधिक उग्र
योजना बनाई थी। यह थी, धरसाना साल्ट
वर्क्स, एक सरकारी नमक डिपो, पर धावा बोलना और उस पर कब्जा करना। सरकार डरी हुई
थी। उसने गांधीजी की गिरफ़्तारी के बाद पूरी तरह से शांत सत्याग्रहियों पर भी नृशंस
अत्याचार करना शुरू कर दिया था। गांधीजी की गिरफ़्तारी और नज़रबंदी के बाद पूरे देश में व्यापक रूप से हड़ताल व
बंद का आयोजन किया गया, लेकिन लोग अहिंसा पर क़ायम रहे। बंबई में लगभग 50,000
मिल मज़दूरों ने काम करने से इंकार कर दिया। रेलवे कामगारों ने भी आंदोलन में
हिस्सा लिया। सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र देने का सिलसिला चल पड़ा। कलकत्ता में
पुलिस ने भीड़ पर गोली चलाई। अनेक लोगों को गिरफ़्तार किया। पेशावर में सैनिक नाके
बंदी कर दी गई। उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त में सेना, विमान, टैंक व
गोला-बारूदों का जमकर उपयोग किया गया। आन्दोलन के फैलने से ब्रिटिश हुकूमत परेशान
थी। कुछ ही दिनों में लाखों लोगों को जेल में ठूंस दिया गया। सत्याग्रहियों पर
सिपाही टूट पड़ते। उनकी ज़बर्दस्त पिटाई की जाती। सिपाहियों की क्रूरता बढ़ती ही जा
रही थी। लेकिन लोगों ने गांधीजी द्वारा दी गई अहिंसा का पाठ हमेशा याद रखा। कई
जगहों पर अहिंसक भीड़ पर पुलिस ने गोलियां भी बरसाईं। भीड़ में महिला और बच्चे भी
होते थे। लेकिन लोग न तो भागते और न ही हिंसा पर उतारू होते। जब अगली पंक्ति के
लोग गोली खाकर गिर पड़ते तो पिछले लोग गोलियों का सामना करने के लिए आगे आ जाते।
लाशों की ढेर में किसी भी सत्याग्रही की पीठ पर गोली नहीं लगी होती।
धरसाना पर हमला
गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद बड़ौदा
के पूर्व-न्यायविद अब्बास तैयबजी ने गांधीजी के उत्तराधिकारी के रूप में सत्याग्रह
का काम संभाला। वे धरसाना के नमक कारखाने तक पहुंचने के लिए तैयार बैठे थे। 12 मई को
कार्यकर्त्ताओं ने यात्रा कार्यक्रम बनाया। अब्बास तैयबजी करडी से रेड का नेतृत्व
करने के लिए चले ही थे कि सूरत के ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस सुपरिन्टेण्डेण्ट ने
तैयबजी और अन्य सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया।
तैयबजी के बाद सरोजिनी नायडू उनकी
उत्तराधिकारिणी बनीं। जब तैयबजी गिरफ़्तार हुए उस समय सरोजिनी नायडू इलाहाबाद में
कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में भाग ले रही थीं। अब्बास तैयबजी के
गिरफ़्तार होने की सूचना मिलते ही, वह धरसाना के लिए निकल पड़ीं। 15 मई को वह 50 स्वयंसेवकों के साथ डिपो की ओर रवाना हुईं। पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते
में ही रोक दिया। वह धरने पर बैठ गईं। पुलिस ने बलप्रयोग से उन्हें हटा दिया।
स्वयंसेवकों को गिरफ़्तार कर लिया गया। 21 मई को 3000 स्वयंसेवकों ने सरोजिनी नायडू व साबरमती आश्रम के वयोवृद्ध नेता इमाम
साहेब के नेतृत्व में धरसाना डिपो पर हमला किया। कूच करने से पहले कवयित्री
सरोजिनी नायडू ने स्वयंसेवकों को प्रार्थना कराई और गांधीजी की शिक्षा पर दृढ़ता
से अमल करने और अहिंसा पर दृढ़ रहने का आग्रह किया। 21 मई के सरोजिनी नायडू के
धरसाना पर धावा करने के प्रयत्न का विस्तृत विवरण ‘न्यूफ़्रीमैन’ का अमरीकी
संवाददाता वेब मिलर ने किया है, जो घटनास्थल पर बड़ी कठिनाई
से पहुँच पाया था। यात्रा शुरू होने के पहले श्रीमती नायडू ने उद्बोधन करते हुए
कहा, “गांधीजी शारीरिक रूप से जेल
में हैं पर उनकी आत्मा हमारे साथ है, भारत का मान आपके हाथों में है, आपको किसी भी
परिस्थिति में हिंसा का प्रयोग नहीं करना है। आपको पीटा जाए तब भी आप विरोध नहीं करें; अपने ऊपर पड़ने
वाले वार को रोकने के लिए हाथ नहीं उठाना है।”
स्वयंसेवकों ने शांतिपूर्वक आधे मील की नमक भण्डार की
यात्रा पूरी की। डिपो के चारों
तरफ कांटेदार तार लगा दिए गए थे और खाई खोद दी गई थी, जिसमें पानी भर दिया गया था।
आधा दर्जन अधिकारियों के अधीन 400 सिपाही तैनात थे। कंटीले तार के अन्दर 25
बंदूकधारी जवान खड़े थे। धारा 144 लागू था। गांधीजी के पुत्र मणिलाल के पीछे जैसे
ही स्वयंसेवकों का पहला जत्था आगे बढ़ा, पुलिस अधिकारियों ने उन्हें दूर हट जाने की
आज्ञा दी। स्वयंसेवक चुपचाप आगे बढ़े। पुलिस के सैकड़ों जवान उन पर टूट पड़े और
डंडे बरसाने लगे। वेब मिलर ने उस नृशंस लाठीचार्ज का आंखों देखा वर्णन इस तरह किया
थाः “अठारह वर्ष़ों से मैं दुनिया के
बाइस देशों में संवाददाता का काम कर चुका हूं, लेकिन जैसा
हृदय-विदारक दृश्य मैंने धरसाना में देखा, वैसा और कहर देखने
को कहीं और नहीं मिला। कभी-कभी तो दृश्य इतना लोमहर्षक और दर्दनाक हो जाता कि मैं
देख भी नहीं पाता और मुझे कुछ क्षणों के लिए आंखें बन्द कर लेनी पड़ती थी।
स्वयंसेवकों का अनुशासन कमाल का था। गांधीजी की अहिंसा को उन्होंने रोम-रोम में
बसा लिया था”।
पुलिस सत्याग्रहियों पर लोहे की नोक
वाली लाठियों से प्रहार कर रहे थे। एक भी सत्याग्रही ने अपने बचाव के लिए हाथ नहीं
उठाया। धरती सत्याग्रहियों से पट गई। वैब मिलर लिखते हैं, “जहां मैं खड़ा था,
वहाँ मुझे नंगी खोपड़ियों पर डंडों के चटाख-चटाख पड़ने की घिनौनी आवाजें सुनाई पड़
रही थीं। जिन पर लाठी पड़ती वे चारों खाने चित्त गिर रहे थे,
मूर्छित हो रहे थे या टूटी खोपड़ी या टूटा कंधा लिए पीड़ा से छटपटा रहे थे। बैठे हुए
आदमियों के पेट व गुप्तांगों पर पुलिस के सिपाही बड़ी क्रूरता से ठोकरें मर रहे थे।
घंटों तक मूर्छित खून से तर-ब-तर लोगों को स्ट्रेचरों पर ले जाया जाता रहा।” पहले दस्ते के बाद दूसरा दस्ता आगे बढ़ा। उनपर भी बर्बरतापूर्ण
प्रहार किया गया। सरोजिनी नायडू और मणिलाल को गिरफ़्तार कर लिया गया। अस्थायी
अस्पताल में 320 लोग घायल पड़े हुए थे। घायलों की चिकित्सा का कोई प्रबंध
नहीं था। कई लोगों की मौत हो गई। मिलर की रिपोर्ट युनाइटेड प्रेस के तहत जब
विश्वभर के 1350 से अधिक समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई, तो सनसनी फैल
गई।
दो दिनों तक सत्याग्रह रोक दिया गया, ताकि नए सत्याग्रही
आ जाएं। किन्तु पुलिस ने नए स्वयंसेवकों को नहीं आने दिया। जो सत्याग्रही वहां थे,
वे 6 जून तक बार-बार नमक फ़ैक्टरी में घुसने का प्रयत्न करते
रहे। सत्याग्रही नमक की ढेरी से नमक लाने में असफल रहे। लेकिन इस आन्दोलन का
लक्ष्य केवल नमक छीनना नहीं था, बल्कि दुनिया को बताना था कि ब्रिटिश शासन का आधार
हिंसा और क्रूरता है। सरकार की दमनकारी नीति से लोग झुकने के बजाए सत्याग्रह पर और
भी दृढ़ हो गए। सारे देश में लोग या तो नमक बनाते या नमक कारख़ानों पर हमला बोलते। बंबई
उपनगर के वडाला के नमक डिपो पर पन्द्रह हज़ार स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। 18 मई
को 470 सत्याग्रहियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। इसी तरह का धावा
सनिकट्टा नमक फैक्ट्री पर भी किया गया जिसमें 10,000
प्रदर्शनकारियों ने भाग लिया। सविनय अवज्ञा का पहला दौर अप्रैल से अक्तूबर तक चला।
शहर ही नहीं गावों तक भी यह फैला। इस अहिंसात्मक आन्दोलन के धरना और बहिष्कार
प्रमुख अंग थे। पूरी शालीनता और अहिंसा के साथ लोग अनुशासित कतारों में बैठ जाते
और सरकारी आदेशों के बावज़ूद टस से मस नहीं होते। घुड़सवार पुलिस घोड़ा दौड़ाते हुए
आती और लोग घुटनों में सिर रख कर हमले का इंतज़ार करते। भीड़ को बिखेर पाने में
पुलिस असमर्थ हो जाती। पुलिस जब भी हिंसा का प्रयोग करती, सत्याग्रहियों का जन
समर्थन और बढ़ जाता। पुलिस हमले से यदि सैंकड़ो घायल होते, तो धरने में शामिल होने
के लिए हज़ारो नए लोग आ जाते।
उपसंहार
दक्षिण अफ़्रीका में गांधीजी ने सबसे
पहला सत्याग्रह जातीय (नस्ली) भेदभाव के खिलाफ किया था। उसके बाद उन्होंने कई और
सत्याग्रहों को नेतृत्व प्रदान किया। विदेशी शासन के ख़िलाफ़ महात्मा गांधी के
नेतृत्व में हुए सभी सत्याग्रह आंदोलनों में नमक सत्याग्रह, राजनीतिक, आर्थिक एवं
सामाजिक दमन, शोषण व अन्याय के ख़िलाफ़ अहिंसक प्रतिरोध का सबसे दमदार उदाहरण है। यह
गांधी जी की अद्भुत कार्यशैली और प्रतिभा को दर्शाता है। इसने साबित किया कि नमक
के ख़िलाफ़ सविनय अवज्ञा अकेले ही समूचे राष्ट्र को आंदोलित व स्पंदित कर उसे ‘पूर्ण
स्वराज’ की प्राप्ति के रास्ते पर अग्रसर कर सकता है।
इस सत्याग्रह ने ब्रिटिश वर्चस्व तोड़ने के लिए भावनात्मक
और नैतिक बल दिया था। गांधी जी का नमक आंदोलन और दांडी
पदयात्रा आधुनिक काल के शांतिपूर्ण संघर्ष का सबसे अनूठा उदाहरण है। यह गांधी जी
के ही नेतृत्व और प्रशिक्षण का चमत्कार था कि लोग अंग्रेजी हुकूमत की लाठियों के
प्रहार को अहिंसात्मक सत्याग्रह से नाकाम बना गए। यह एक ऐसा सफल आंदोलन था जिसने
न सिर्फ ब्रिटेन को बल्कि सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। नमक अपने आप में
कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज नहीं था, लेकिन यह राष्ट्रीयता का प्रतीक बन गया।
लोग नमक बनाने के लिए संघर्ष नहीं कर रहे थे बल्कि उसके
जरिए वे यह साबित कर रहे थे कि सरकारी दमन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।
गांधी जी की जनता में प्रेरणा भरने की
इस विस्मयकारी शक्ति को बहुत पहले ही श्री गोखले जी ने भांप लिया था और कहा था, “इनमें मिट्टी के घोंघे से बड़े-बड़े बहादुरों
का निर्माण करने की शक्ति है।” राष्ट्रीय
उद्देश्य को पाने के लिए एक कार्य-प्रणाली के रूप में शांतिपूर्ण
सविनय अवज्ञा आंदोलन की उपयोगिता पर अब किसी को संदेह नहीं रह गया था। लोगों
में यह विश्वास जड़ जमा चुका था कि वे स्वतन्त्रता संग्राम में विजय की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। क़रीब एक लाख
सत्याग्रही, जिनमें 17,000 महिलाएं थीं, जेल में थे। इन
आंदोलनों में स्त्रियों और किशोरों का शामिल होना इस अहिंसात्मक आन्दोलन की एक अन्य विशेषता थी। स्कूलों और कालेजों का बहिष्कार कर छात्र भी स्वतंत्रता
के आन्दोलन में हिस्सा लेने लगे थे। प्रशासन करीब-क़रीब ठप्प पड़ गया था। जिस
वायसराय ने गांधीजी की चुटकी भर नमक से सरकार को परेशान कर देने की योजना की हंसी
उड़ाई थी, अब महसूस करने लगे थे कि स्थिति पर उनका नियंत्रण खो चुका है। फरवरी 1931 में इरविन ने गांधीजी के सामने
स्वीकार किया था, “आपने तो नमक के मुद्दे को लेकर अच्छी रणनीति तैयार की है।” उधर देश के लोगों के मन में यह आशा बंध चली थी कि अहिंसात्मक मार्ग
ही हमें स्वराज्य की ओर ले जाएगा।
लोग नमक के ज़रिए यह साबित कर रहे
थे कि सरकारी दमन बहुत दिनों तक नहीं चल सकता।
लार्ड इरविन ने दमन की व्यर्थता महसूस की। उसने दिसम्बर में कलकत्ता में
कहा, “हालाकि मैं सविनय अवज्ञा की
ज़ोरदार ढंग से निन्दा करता हूं, फिर भी यह हमारी भयंकर भूल होगी कि राष्ट्रवाद के
शक्तिशाली आशय को कम करके आंके। सरकार के कठोर कदमों से न तो कोई पूर्ण व स्थायी
हल निकाला जा सका है और न शायद कभी निकाला जा सकेगा।” यह सब गांधीजी की अभूतपूर्व प्रेरणा का ही परिणाम था।
गांधीजी द्वारा आरंभ किया हुआ आन्दोलन सफल हुआ। इस सफलता का श्रेय गांधीजी की नीति, ‘हिंसा
का प्रयोग नहीं करना है’ को दिया जाना चाहिए।
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मनोज कुमार
पिछली कड़ियां- राष्ट्रीय आन्दोलन
संदर्भ : यहाँ पर